नर्मदा नदी
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अन्य नाम | रेवा |
देश | भारत |
राज्य | गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेशऔर महाराष्ट्र |
प्रमुख नगर | जबलपुर, इन्दौर, वड़ोदरा |
उद्गम स्थल | विंध्याचल की मैकाल पहाड़ी श्रृंखला में अमरकंटक नामक स्थान |
लम्बाई | 1310 किमी |
पौराणिक उल्लेख | रामायण तथा महाभारत और परवर्ती ग्रंथों में इस नदी के विषय में अनेक उल्लेख हैं। |
धार्मिक महत्त्व | मत्स्य पुराण एवं पद्म पुराण आदि में ऐसा आया है कि उस स्थान से जहाँ नर्मदा सागर में मिलती है, अमरकण्टक पर्वत तक, 10 करोड़ तीर्थ हैं। |
गूगल मानचित्र | नर्मदा नदी |
नर्मदा नदी भारत के मध्यभाग में पूरब से पश्चिम की ओर बहने वाली मध्य प्रदेश और गुजरात राज्य में बहने वाली एक प्रमुख नदी है, जो गंगा के समान पूजनीय है। महाकाल पर्वत के अमरकण्टक शिखरसे नर्मदा नदी की उत्पत्ति हुई है। नर्मदा सर्वत्र पुण्यमयी नदी बताई गई है तथा इसके उद्भव से लेकर संगम तक दस करोड़ तीर्थ हैं।
- पुण्या कनखले गंगा कुरुक्षेत्रे सरस्वती ।
ग्रामे वा यदि वारण्ये पुण्या सर्वत्र नर्मदा ॥[1]
- नर्मदा संगम यावद् यावच्चामरकण्टकम् ।
तत्रान्तरे महाराज तीर्थकोट्यो दश स्थिता: ॥[2]
इसका उद्गम विंध्याचल की मैकाल पहाड़ी श्रृंखला में अमरकंटक नामक स्थान में है । मैकाल से निकलने के कारण नर्मदा को मैकाल कन्या भी कहते हैं । स्कंद पुराण में इस नदी का वर्णन रेवा खंड के अंतर्गत किया गया है । कालिदास के ‘मेघदूतम्’ में नर्मदा को रेवा का संबोधन मिला है , जिसका अर्थ है—पहाड़ी चट्टानों से कूदने वाली। वास्तव में नर्मदा की तेजधारा पहाड़ी चट्टानों पर और भेड़ाघाट में संगमरमर की चट्टानों के ऊपर से उछलती हुई बहती है । अमरकंटक में सुंदर सरोवर में स्थित शिवलिंग से निकलने वाली इस पावन धारा को रुद्र कन्या भी कहते हैं, जो आगे चलकर नर्मदा नदी का विशाल रूप धारण कर लेती हैं । पवित्र नदी नर्मदा के तट पर अनेक तीर्थ हैं , जहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है । इनमें कपिलधारा, शुक्लतीर्थ, मांधाता, भेड़ाघाट, शूलपाणि, भड़ौंच उल्लेखनीय हैं । अमरकंटक की पहाड़ियों से निकल कर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरातसे होकर नर्मदा क़्ररीब 1310 किमी का प्रवाह पथ तय कर भरौंच के आगे खंभात की खाड़ी में विलीन हो जाती है । परंपरा के अनुसार नर्मदा की परिक्रमा का प्रावधान हैं, जिससे श्रद्धालुओं को पुण्य की प्राप्ति होती है । पुराणों में बताया गया है कि नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से समस्त पापों का नाश होता है ।
इसकी लम्बाई प्रायः 1310 किलो मीटर है। यह नदी पश्चिम की तरफ जाकर खम्बात की खाड़ी में गिरती है। इस नदी के किनारे बसा शहर जबलपुरउल्लेखनीय है। इस नदी के मुहाने पर डेल्टा नहीं है। जबलपुर के निकट भेड़ाघाट का नर्मदा जलप्रपात काफ़ी प्रसिद्ध है। वेदों में नर्मदा का कोई उल्लेख नहीं है। गंगा के उपरान्त भारत की अत्यन्त पुनीत नदियों में नर्मदा एवं गोदावरी के नाम आते हैं। रेवा नर्मदा का दूसरा नाम है और यह सम्भव है कि 'रेवा' से ही 'रेवोत्तरस' नाम पड़ा हो।
ग्रंथों में उल्लेख
वैदिक साहित्य में नर्मदा के विषय में कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिलता।
- रामायण तथा महाभारत और परवर्ती ग्रंथों में इस नदी के विषय में अनेक उल्लेख हैं। पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार नर्मदा की एक नहर किसी सोमवंशी राजा ने निकाली थी जिससे उसका नाम सोमोद्भवा भी पड़ गया था।
- गुप्तकालीन अमरकोश में भी नर्मदा को सोमोद्भवा कहा है।[3]
- कालिदास ने भी नर्मदा को सोमप्रभवा कहा है।[4]
- रघुवंश में नर्मदा का उल्लेख है।[5]
- मेघदूत में रेवा या नर्मदा का सुन्दर वर्णन है।[6]
- जान पड़ता है कि कहीं-कहीं साहित्य में इस नदी के पूर्वी या पहाड़ी भाग को रेवा (शाब्दिक अर्थ—उछलने-कूदने वाली) और पश्चिमी या मैदानी भाग को नर्मदा (शाब्दिक अर्थ—नर्म या सुख देने वाली) कहा गया है। (किन्तु महाभारत के उपर्युक्त उद्धरण में उदगम के निकट ही नदी को नर्मदा नाम से अभिहित किया गया है)। नर्मदा के तटवर्ती प्रदेश को भी कभी-कभी नर्मदा नाम से ही निर्दिष्ट किया जाता था। विष्णुपुराण के अनुसार इस प्रदेश पर शायद गुप्तकाल से पूर्व आभीर आदि शूद्रजातियों का अधिकार था।[17] वैसे नर्मदा का नदी के रूप में उल्लेख है।[18] [19]वाल्मीकि रामायण में भी नर्मदा का उल्लेख है।[7] इसके पश्चात के श्लोकों में नर्मदा का एक युवती नारी के रूप में सुंदर वर्णन है[8]।
- महाभारत में नर्मदा को ॠक्षपर्वत से उद्भूत माना गया है।[9] [10]
- भीष्मपर्व में नर्मदा का गोदावरी के साथ उल्लेख है।[11]
- श्रीमद्भागवत में रेवा और नर्मदा दोनों का ही एक स्थान पर उल्लेख है।[12]
- शतपथ ब्राह्मण[13] ने रेवोत्तरस की चर्चा की है, जो पाटव चाक्र एवं स्थपति (मुख्य) था, जिसे सृञ्जयों ने निकाल बाहर किया था।[14]
- पाणिनि[15] के एक वार्तिक ने 'महिष्मत्' की व्युत्पत्ति 'महिष' से की है, इसे सामान्यत: नर्मदा पर स्थित माहिष्मती का ही रूपान्तर माना गया है। इससे प्रकट होता है कि सम्भवत: वार्तिककार को (लगभग ई.पू. चौथी शताब्दी में ) नर्मदा का परिचय था।
- रघुवंश[16] में रेवा (अर्थात् नर्मदा) के तट पर स्थित माहिष्मती को अनूप की राजधानी कहा गया है।
नर्मदा की महत्ता
मन्त्र का जप एवं उपवासमहाभारत एवं कतिपय पुराणों में नर्मदा की चर्चा बहुधा हुई है। मत्स्य पुराण[20], पद्म पुराण[21]कूर्म पुराण[22] ने नर्मदा की महत्ता एवं उसके तीर्थों का वर्णन किया है। मत्स्य पुराण[23] एवं पद्म पुराण आदि[24] में ऐसा आया है कि उस स्थान से जहाँ नर्मदा सागर में मिलती है, अमरकण्टक पर्वत तक, जहाँ से वह निकलती है, 10 करोड़ तीर्थ हैं। अग्नि पुराण[25] एवं कूर्म पुराण[26] के मत से क्रम से 60 करोड़ एवं 60 सहस्र तीर्थ हैं। नारदीय पुराण[27] का कथन है कि नर्मदा के दोनों तटों पर 400 मुख्य तीर्थ हैं[28], किन्तु अमरकण्टक से लेकर साढ़े तीन करोड़ हैं।[29] [30] वन पर्व[31] ने नर्मदा का उल्लेख गोदावरी एवं दक्षिण की अन्य नदियों के साथ किया है। उसी पर्व[32] में यह भी आया हैं कि नर्मदा आनर्त देश में है, यह प्रियंगु एवं आम्र-कुञ्जों से परिपूर्ण है, इसमें वेत्र लता के वितान पाये जाते हैं, यह पश्चिम की ओर बहती है और तीनों लोकों के सभी तीर्थ यहाँ (नर्मदा में) स्नान करने को आते हैं।[33] मत्स्य पुराण एवं पद्म पुराण ने उद्घोष किया है कि गंगा कनखल में एवं सरस्वती कुरुक्षेत्र में पवित्र है, किन्तु नर्मदा सभी स्थानों में, चाहे ग्राम हो या वन। नर्मदा केवल दर्शन-मात्र से पापी को पवित्र कर देती है; सरस्वती (तीन दिनों में) तीन स्नानों से, यमुना सात दिनों के स्नानों से और गंगा केवल एक स्नान से।[34] विष्णुधर्मसूत्र[35] नेश्राद्ध के योग्य तीर्थों की सूची दी हैं, जिसमें नर्मदा के सभी स्थलों को श्राद्ध के योग्य ठहराया है। नर्मदा को रुद्र के शरीर से निकली हुई कहा गया है, जो इस बात का कवित्वमय प्रकटीकरण मात्र है कि यह अमरकण्टक से निकली है जो महेश्वर एवं उनकी पत्नी का निवास-स्थल कहा जाता है।[36] [37] वायु पुराण[38] में ऐसा उद्घोषित है कि नदियों में श्रेष्ठ पुनीत नर्मदा पितरों की पुत्री है और इस पर किया गया श्राद्ध अक्षय होता है।[39] मत्स्य पुराण एवं कूर्म पुराण का कथन है कि यह 100 योजन लम्बी एवं दो योजन चौड़ी है।[40] प्रो.के.वी. रंगस्वामी आयंगर ने कहा है कि मत्स्य पुराण की बात ठीक है, क्योंकि नर्मदा वास्तव में लगभग 800 मील लम्बी है।[41] किन्तु दो योजन (अर्थात् उनके मतानुसार 16 मील) की चौड़ाई भ्रामक है। मत्स्य पुराण एवं कूर्म पुराण का कथन है कि नर्मदा अमरकण्टक से निकली हैं, जो कलिंग देश का पश्चिमी भाग है।[42]
विष्णुपुराण ने व्यवस्था दी है कि यदि कोई रात एवं दिन में और जब अन्धकारपूर्ण स्थान में उसे जाना हो तब 'प्रात:काल नर्मदा को नमस्कार, रात्रि में नर्मदा को नमस्कार! हे नर्मदा, तुम्हें नमस्कार; मुझे विषधर साँपों से बचाओं' इस मन्त्र का जप करके चलता है तो उसे साँपों का भय नहीं होता।[43] कूर्म पुराण एवं मत्स्य पुराण में ऐसा कहा गया है कि जो अग्नि या जल में प्रवेश करके या उपवास करके (नर्मदा के किसी तीर्थ पर या अमरकण्टक पर) प्राण त्यागता है वह पुन: (इस संसार में) नहीं आता।[44]
टॉलेमी ने नर्मदा को 'नमडोज' कहा है।[45] नर्मदा की चर्चा करने वाले शिलालेखों में एक अति प्राचीन लेख है एरन प्रस्तरस्तम्भाभिले, जो बुधगुप्त के काल[46] का है।[47] नर्मदा में मिलने वाली कतिपय नदियों के नाम मिलते हैं, यथा-प्राचीन लेख
- कपिला नदी[48]
- विशल्या[49]
- एरण्डी नदी[50]
- इक्षु-नादी[51]
- कावेरी नदी।[52][53]
उपतीर्थ
महेश्वरतीर्थ (अर्थात् ओंकार), जहाँ से एक तीर द्वारा रुद्र ने बाणासुर की तीन नगरियाँ जला डालीं[54],बहुत-से उपतीर्थों के नाम आते हैं जिनमें दो या तीन का यहाँ उल्लेख किया जायगा। जो है-
- शुक्ल-तीर्थ[55],
- भृगुतीर्थ:-जिसके दर्शन मात्र से मनुष्य पाप-मुक्त हो जाता है, जिसमें स्नान करने से स्वर्ग मिलता है और जहाँ मरने से संसार में पुन: लौटना नहीं पड़ता,
- जामदग्न्य तीर्थ:-जहाँ नर्मदा समुद्र में गिरती है और जहाँ भगवान जनार्दन ने पूर्णता प्राप्त की।
अमरकण्टक पर्वत एक तीर्थ है जो ब्रह्महत्या के साथ अन्य पापों का मोचन करता है और यह विस्तार में एक योजन है।[56] नर्मदा का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तीर्थ है माहिष्मती, जिसके स्थल के विषय में विद्वानों में मतभेद रहा है। अधिकांश लेखक यही कहते हैं कि यह ओंकार मान्धाता है जो इन्दौर से लगभग 40 मील दक्षिण नर्मदा में एक द्वीप है। इसका इतिहास पुराना है। बौद्ध ग्रन्थों में ऐसा आया है कि अशोक महान् के राज्यकाल[57] में मोग्गलिपुत्त तिस्स ने कई देशों में धार्मिक दूत-मण्डल भेजे थे, जिनमें एक दूतमण्डल महिषमण्डल को भी भेजा गया था। डा. फ्लीट ने महिषमण्डल को माहिष्मती कहा है।[58] महाभाष्यकार को माहिष्मती का ज्ञान था[59] कालिदास ने इसे रेवा से घिरी हुई कहा है।[60] उद्योगपर्व[61], अनुशासन पर्व[62], भागवत पुराण[63] एवं पद्म पुराण[64] में माहिष्मती को नर्मदा या रेवा पर स्थित माना गया है। एक अन्य प्राचीन नगर है भरुकच्छ या भृगुकच्छ (आधुनिक भड़ोच)।
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